ऑटिज्म जागरूकता के संबंध में होंगे अनेक कार्यक्रम
इंदौर, 30 मार्च 2025
प्रत्येक वर्ष 2 अप्रैल विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन बच्चों में होने वाली न्यूरो डेवलपमेंटल विकार ऑटिज़्म की जागरूकता फैलाई जा सकती है ताकि बच्चों में उसकी पहचान जल्द से जल्द की जा सके और उसका निदान किया जा सके।
ऑटिज़्म क्या है?
ऑटिज़्म एक न्यूरो डेवलपमेंटल विकार है, जो बच्चों में सामाजिक संवाद, व्यवहार और सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है, ऑटिज़्म को हिंदी में ‘स्वलीनता विकार’ भी कहा जाता है। ऑटिज़्म के प्रमुख लक्षणों में व्यक्ति को सामाजिक संपर्क बनाने, भाषा को समझने एवं उपयोग करने, अपने दैनिक कार्य करने और शिक्षा संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
*ऑटिज़्म को कैसे पहचानें?*
ऑटिज़्म के लक्षण एक बच्चे में संभवतः 6 से 9 महीने की उम्र से ही दिखने लगते हैं। इन लक्षणों को जितना जल्दी पहचान कर उन के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जाए यह ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे के सफलतापूर्वक इलाज के लिए बहुत जरूरी होता है। ऑटिज़्म के संभावित लक्षण बच्चे के शारीरिक विकास के साथ बौद्धिक विकास में देरी, दूसरे लोगों से आंखों से संपर्क न साध पाना, नाम सुन कर प्रतिक्रिया न देना, सामाजिक विकास में कठिनाई, अकेले खेलना पसंद करना, भावों को समझने और व्यक्त करने में कठिनाई, बार-बार एक ही गतिविधि करना, कुछ खास चीज़ों में अत्यधिक रुचि दिखाना, हर दिन एक विशेष दिनचर्या से ही चलना, बोलने में देरी या कम बोलना, भाषा को समझने में कठिनाई, रोबोट जैसे बोलना, अपने में खोये रहना तथा अपनी बातें समझने के लिए शारीरिक भाषा का उपयोग करना आदि शामिल है।
*आटिज्म का खास लक्षण- संवेदी प्रसंस्करण विकार(sensory processing disorder)*
आटिज्म से ग्रसित ज्यादातर बच्चों में संवेदी प्रसंस्करण में दिक्कत होती है, जो कि ऑटिज़्म के काफी सारे अन्य लक्षणों को और ज्यादा बड़ा देती है। आटिज्म वाले बच्चों में इन्द्रियों (जैसे- देखना, सुनना, छूना, सूंघना, चखना आदि) से आने वाली जानकारी को समझने और उस पर उचित प्रतिक्रिया देने में कठिनाई होती है। जो कुछ बच्चों में ज्यादा या कुछ में कम हो सकती है। संवेदी समस्याओं के लिए किसी ऑक्यूपेशनल थेरेपी विशेषज्ञ की सहायता से संवेदी एकीकरण (Sensory Integration) की मदद से इन समस्याओं का निदान मुमकिन है।
*आटिज्म का उपचार*
आटिज्म के उपचार के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। आटिज्म से ग्रसित बच्चे के अभिभावकों का आटिज्म के प्रति जागरूक होना, ताकि वो अपने बच्चे में सही समय पर आटिज्म के लक्षणों को पहचान सकें और विशेषज्ञों की मदद से उसका सही ढंग से इलाज किया जा सके।
ऑटिज़्म के उपचार के लिए कई विशेषज्ञों की एक टीम की आवश्यकता होती है जिसमें बच्चों के न्यूरोलॉजिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट का प्रमुख रूप से काम होता है। बच्चों में सही समय पर आटिज्म के लक्षणों की पहचान, सही मार्गदर्शन एवं सही थेरेपी से एक आटिज्म से ग्रसित बच्चे का इलाज काफी हद तक मुमकिन है।
इंदौर के प्रतिष्ठित ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट डॉ. परेश माथुर जो कि इंदौर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट संघ के उपाध्यक्ष भी है एवं डॉ. शेरिलीन माथुर दोनों पिछले 10 वर्षों से अधिक से ऑक्यूपेशनल थेरेपी के माध्यम से आटिज्म के हज़ारों बच्चों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं।
उन्होंने यह सारी जानकारी सांझा की और साथ में बताया कि अत्यधिक मोबाइल एवं टीवी के प्रयोग से भी आटिज्म बढ़ता है। आटिज्म की जागरूकता एवं आटिज्म को अति शीघ्र पता लगाने के लिए उन्होंने अपने अनूप नगर, इंदौर स्थित इलीट चाइल्ड थेरेपी क्लिनिक पर 2 अप्रैल से 7 अप्रैल तक बच्चों की फ्री जाँच एवं सलाह की सुविधा रखी है, जिसमें बच्चों के अभिभावक जाकर अपने बच्चों की आटिज्म से संबंधित समस्याओं की जानकारी एवं मार्गदर्शन ले सकते हैं।
(आलेख: डॉ. परेश माथुर)