लखनऊ । हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने श्रीरामचरित मानस की कुछ चौपाइयों को आधार बनाकर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने के मामले में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ दर्ज केस को खारिज करने से इन्कार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि उन्हें मानस की चौपाइयों का सही अर्थ समझना चाहिए। किसी भी ग्रंथ में दिए गए कथन को सही परिप्रेक्ष्य में पढ़ा जाना चाहिए।
जब मानस की कोई चौपाई उद्धरित की जाये तो अनिवार्य रूप से यह ध्यान रखा जाए कि उसमें कहा गया कथन किस पात्र ने किस परिस्थिति में किस व्यक्ति से कहा है। कोर्ट ने दो दोहों का जिक्र करते हुए कहा कि मौर्या का मत आम व्याख्या से भिन्न हो सकता है किंतु स्वतंत्र समीक्षा अथवा आलोचना का यह तात्पर्य नहीं है कि ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाए कि लोग अपराध के लिए प्रेरित होने लगें।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने स्वामी प्रसाद की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। उन्होंने प्रतापगढ़ में उन पर चल रहे एक केस को खारिज करने की मांग की थी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा- उनके कृत्य से आहत हुई भावनाएं । टिप्पणी-किसी भी ग्रंथ में दिये कथन को सही परिप्रेक्ष्य में पढ़ा जाना चाहिए ।
केस मानस पर गलत टिप्पणियां करके लोगों की भावनाओं को आहत करने के मामले में उनके व अन्य लोगों पर दर्ज किया गया था जिस पर विवेचना के बाद विचारण प्रारम्भ हो गया है। स्वामी प्रसाद की टिप्पणी पर 31 जनवरी, 2023 को प्राथमिकी दर्ज होने के बाद मानस की प्रतियां जलाई गईं और हिंदू समाज को गालियां दी गईं। इससे मानस प्रेमियों में आक्रोश व्याप्त हुआ। पीठ ने मानस की चौपाई ‘ढोल
गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’ का जिक्र करते हुए कहा कि इसे श्री रामचंद्र ने समुद्र से इस आशय से कहा कि वह जड़ बुद्धि है। कोई कथन जब समस्त तथ्यों के संदर्भ के बिना प्रस्तुत किया जाता है तो वह सत्य का सही विरूपण नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि विद्वानों के अनुसार यहां ताड़न शब्द का अर्थ सीख अथवा शिक्षा देना है तथा चौपाई का सही अर्थ यह है कि इसमें कहे गए सभी प्रकार के पात्र भी सीख पाने के अधिकारी हैं।