‘’विश्व पर्यावरण दिवस’’ वर्ष 1972 में पर्यावरण संरक्षण के महत्व को जागरूक करने के लिए ‘’संयुक्त राष्ट्र संघ’’ द्वारा शुरू किया गया था। यह दिन हर साल 5 जून को मनाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण के प्रति संवेदना को बढ़ावा देना है। वैसे तो पर्यावरण एक दिन कार्यक्रम करने का विषय नहीं है, यह एक संकल्प है जो निरन्तर चलने वाली सुधारात्मक प्रक्रिया का एक हिस्सा है। 5 जून एक ऐसा अलार्म है जो हमें पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्य का बोध करता है। इस दिन लोग पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझने और इसके संरक्षण के लिए समेकित स्वर में आवाज उठाते हैं।
मध्यप्रदेश में पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत रूप से कार्य किये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश की जनता जनार्दन पर्यावरण प्रेमी होने के साथ पर्यावरण के इको सिस्टम के प्रति संवेदनशील भी है। पर्यावरण शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पर्यावरण सचेतना कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्कूल-कॉलेज में पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम हो रहे हैं। आज के युवा पर्यावरण के प्रति सजग और समर्पित है। आज के समय की एक और मांग है कि वृक्षों का स्थानांतरण – यानी ट्री ट्रांसप्लांट करना। इसके बारे के जागरूकता की बहुत आवश्यकता है। अक्सर देखा गया है कि निर्माण कार्यों में पेड़ों को काट दिया जाता है जबकि उन्हें ट्रांसप्लांट कर बचाया जा सकता है। इसके लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है। यह कार्य बहुत जटिल भी नहीं है। अन्य राज्यों की अपेक्षा मध्यप्रदेश में जंगलों एवं वृक्षों की संख्या अच्छी है लेकिन हमें इसे समय की जरूरत को देखते हुए और बढ़ाना है। ट्री ट्रांसप्लांट से हम पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं। जल संरक्षण के लिए जल संरक्षण अभियान और जल संचारण परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। शहरों में ‘’रेन वॉटर हार्वेस्टिंग’’ को बढ़ावा देने के लिए नियम में स्पष्टता लाई जा रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में स्टॉप डेम, खेत तालाब, सिंचाई की आधुनिक पद्धति ड्रिप इरीगेशन जिसमें जल को कल के लिए बचाया जा सके, इस दिशा में काम चल रहा है। म.प्र. में “Per Drop more crop” की अवधारणा पर कार्य किया जा रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि ग्रामीण युवा जल संरक्षण को लेकर बहुत जागरूक दिखाई दे रहे हैं। स्वच्छता अभियान चलाकर शहरों और गाँवों को स्वच्छ रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में कचरा निस्तारण किया जा रहा है। शहरों में तो दिन और रात सफाई हो रही हैं। इंदौर भारत का पहला ऐसा शहर बना है जो स्वच्छता के 7 कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। वहीं कई गांव है जो आदर्श ग्राम बन कर प्रेरणा दे रहे हैं। बिजली और पानी की बचत के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए उपायों पर काम किया जा रहा है। सुदूर क्षेत्रों में पेड़ लगाने और वन्यजीव संरक्षण के लिए परियोजनाएं शुरू की गई हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए सामुदायिक संगठनों का सहयोग दिया जा रहा है। इन सभी कार्यों का उद्देश्य प्रदूषण को कम करके एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण का संरक्षण करना है। जिससे आने वाली पीढ़ी खुली हवा में सांस ले सके और शुद्ध हवा, शुद्ध जल आदि उनके लिए बचे रहे।
जैविक खेती आज की जरूरत है। किसान इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं लेकिन अभी और जागरूकता बाकी है। हम सब को मिलकर देशहित में प्रयास करना चाहिए कि जैविक खेती को अधिक से अधिक अपनाकर प्रेस्टीसाइड के उपयोग को कम किया जाए। इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और पर्यावरण का तंत्र भी मजबूत होगा। आज के जमाने में हो रही बीमारियों में बहुत बड़ा कारण दवाई के छिड़काव से उत्पादित खेती का अनाज, सब्जी आदि का सेवन करना है। जबकि जैविक खेती न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है बल्कि आर्थिक रूप से हमें सक्षम भी बनाती है। इतना ही नहीं जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। इसी से जुड़ा हुआ एक और महत्वपूर्ण विषय है – गोवंश। गोवंश पालन आज की जरूरत है। गाय का हमारे जीवन में बहुत योगदान रहा है। गाय से सिर्फ दूध ही नहीं मिलता बल्कि उसके गोबर से 120 से ज्यादा उत्पाद बनाये जाते हैं। गाय के मूत्र से बनने वाला जीवामृत कृषि कार्य में उपयुक्त होने वाला सबसे बेहतरीन अमृत है। इसके उपयोग मात्र से फसलों में लगने वाली बीमारियां दूर हो जाती है। हमारी संस्कृति में गाय को माता माना गया है और उसकी पूजा की जाती है। गाय को गोधन भी इसलिए कहा जाता है कि वह हमारी संपदा भी है। उसके पालन से कई किसानों के परिवार अपनी आजीविका चलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अलसुबह गाय के दर्शन करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
आज 5 जून से मध्य प्रदेश में ‘’नमामि गंगे’’ अभियान प्रारंभ किया जा रहा है। इस अभियान में तालाब, बावड़ी, पोखर, नदियों और अन्य जलस्रोतों का संरक्षण और पुनरुद्धार होगा, वहीं व्यापक पैमाने पर वृक्षारोपण की तैयारी भी इस दौरान की जाएगी। अभियान के दौरान जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर कराये जाएंगे। अभी वर्तमान में कुँए, बावड़ी और तालाब के गहरीकरण और उन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। वहीं नदियों को उनका अस्तित्व लौटने के प्रयास जारी है।
विश्व पर्यावरण दिवस के उद्देश्य को म.प्र. में सार्थक करेगा ‘’नमामि गंगे’’ अभियान
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