रिपोर्ट नलिन दीक्षित
सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया।
धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।
भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।
प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी।
जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई।
व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई।
गर्भाधान संस्कार – उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए।
पुंसवन संस्कार – गर्भ के तीसरे माह में विधिवत पुंसवन संस्कार सम्पन्न कराया जाता है।क्योंकि इस समय तक गर्भस्थ शिशु के विचार तंत्र का विकास प्रारंभ हो जाता है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार – गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।
जातकर्म संस्कार – बालक के जन्म के पश्चात उसकी रक्षार्थ यह संस्कार किया जाता है।
नामकरण संस्कार – इस संस्कार में पुरोहित बालक की जन्म राशि के अनुसार नाम निर्धारित करते हैं।
निष्क्रमण संस्कार – इसमें शिशु को पहली बार घर के भीतर से बाहर निकाला जाता है।
अन्नप्राशन संस्कार – जन्म से छह माह के पश्चात दांत निकलते समय बच्चे को अन्न खिलाना प्रारंभ संस्कार में करते हैं।
मुंडन/चूडाकर्म संस्कार – इसमें बालक के केशों को मुंडवा कर मात्र चोटी रखते हैं
विद्यारंभ संस्कार – जब बालक/ बालिका की आयु शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाय, तब उसका विद्यारंभ संस्कार कराया जाता है
कर्णवेध संस्कार – यह कान व नाक छिदवाने की परंपरा है।
यज्ञोपवीत संस्कार – उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है।वेदारम्भ संस्कार – प्रातकाल आचार्य ब्रह्म मुहूर्त में बालक को वेदों का अध्ययन कर आते हैं।
केशान्त संस्कार – गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने और गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम ह। समावर्तन संस्कार – गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था
विवाह संस्कार – शिक्षा समाप्ति के बाद गृहस्थाश्रम में प्रवेश हेतु यह संस्कार होता है अन्त्येष्टि संस्काश्राद्ध संस्कार यह अंतिम संस्कार है इसे मृत्यु के बाद किया जाता है।