समाचार-पत्रों में प्रत्याशियों के आपराधिक प्रकरणों के विज्ञापन नजर आने लगे हैं। दरअसल आयोग ने यह अनिवार्य किया है कि हर उम्मीदवार को अपने इस तरह के प्रकरणों की जानकारी सोशल मीडिया के साथ-साथ समाचार-पत्रों में भी तीन बार प्रकाशित करवाना पड़ेगी। इसके लिए 25 हजार सर्कुलेशन वाले समाचार-पत्रों में ही विज्ञापन छपवाना अनिवार्य किया गया है।
हालांकि उम्मीदवार इसका पालन नहीं कर रहे हैं। इसी तरह सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का प्रचार-प्रसार चल रहा है और उसका भी खर्चा चुनावी खाते में जोड़ने की चेतावनी दी गई है।
विधानसभा चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दल और उम्मीदवारों के इतिहास की जानकारी भले ही सबको रहती है, मगर मतदान से पहले तीन बार विज्ञापन देकर भी आम जनता, यानि मतदाताओं को उसकी सूचना देना जरूरी । नामांकन फार्म के साथ प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा अपनी चल-अचल सम्पत्तियों के साथ- साथ शैक्षणिक, वैवाहिक स्थिति से लेकर बैंक खातों, लोन के साथ-साथ आपराधिक प्रकरणों की जानकारी देना भी अनिवार्य है, वहीं पहला प्रकाशन 6 नवम्बर तक, दूसरा 7 से 10 नवम्बर के बीच और तीसरा प्रकाशन 11 नवम्बर से प्रचार समाप्ति यानि 17 नवम्बर मतदान दिवस के दो दिन पूर्व तक करना अनिवार्य है। इतना ही नहीं आयोग ने यह भी स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रीय समाचार- पत्र, जिनकी कम से कम एक संस्करण की संख्या डीएवीपी/ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के मानक अनुसार न्यूनतम 75000 से अधिक हो एवं जिनका एक से अधिक राज्य में सर्कुलेशन हो तथा इसी प्रकार ऐसे स्थानीय समाचार पत्रों जिनमें संख्या डीएवीपी/ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के मानक अनुसार न्यूनतम 25000 हो, में प्रकाशन की कार्यवाही की जाना है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में समय-समय पर दिये गये निर्णयों के परिप्रेक्ष्य में निर्वाचन लड़ रहे अभ्यर्थियों एवं राजनैतिक दलों से अपेक्षा की गई है कि आपराधिक इतिहास के विवरण सर्वसाधारण की जानकारी के अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित की जाए।