“पिता” शब्द के मात्र उच्चारण से करता हूँ अपने आप को सुरक्षित महसूस ।
कुछ लिखने से पहले मनन किया क्या इस महान कृति पिता के लिए कुछ लिखने में क्या मैं समर्थ हूं। पिता ,पिताजी, पिताश्री ,पापा ,डैडी या और कुछ “कितना गौरव एवं गुरुता है इस शब्द में । इस शब्द के मात्र उच्चारण से सभी चिंताओं और आपदाओ दोनों से मुक्त होता महसूस करता हूं । पिता बनने के पश्चात मैंने जाना की एक पिता अपनी संतान के लिए हृदय में असीम प्यार इतना कोमल जो किसी पुष्प से कम नहीं एवं संतान के भविष्य निर्माण के लिए कठोर निर्णय लेने की हिम्मत जो किसी पहाड़ से कम नहीं उससे भी कठोर हो, यह मैंने जाना है ।
पिता एक आवरण है , जिसमें संतान रूपी भ्रूण सुरक्षित रह कर पोषण प्राप्त करता है और अपने मानवीय गुणों का विकास करता है , एक पिता ही है जो अपनी संतान के विकसित भविष्य, सामाजिक संपन्नता एवं सम्मान से आत्मिक आनंद प्राप्त करता है। संतान के सम्मान में वह स्वयं को गौरवान्वित एवं स्वयं को भी सम्मानित महसूस करते हैं। पिता स्वयं धर्म चिन्ह है जो हमें धर्म मार्ग के लिए हमेशा प्रेरणा देते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए हमेशा से ही मार्ग प्रशस्त करते आए हैं ।
स्वयं की जरूरतें पूरी ना करते हुए बच्चों के सपनों में अपनी खुशी पूरी करते हुए तो आप सब ने देखा ही है । भूमि के भ्रूण को वृक्ष बनने में धरती मां का योगदान तो प्रथमतः है ही , किंतु उस भ्रूण के संरक्षण, विकसन एवं मधुर फल प्रस्फुटन तक इस आकाश रूपी वातावरण एवं आवरण का योगदान भी लक्षित होता ही है । आयुर्वेद शास्त्रों में मरीज को पुत्र सम मानने का प्रण एवं निर्देश सिर्फ इसीलिए है कि जिस प्रकार एक मरीज सर्वस्व प्राण चिकित्सक के प्रति समर्पित करता है और चिकित्सक को अपने कर्तव्य पालन का एक बड़ा भार देता है जिसका वहन एक चिकित्सक अपनी पूर्ण गरिमा ,शक्ति एवं सामर्थ्य के साथ करता है । मैंने स्वयं पिता रूपी शक्ति को कठोर निर्णय लेते हुए देखा है जिन से संभव हो उनके हृदय में पीड़ा रही होगी , किंतु वह निर्णय लेना , मेरे लिए, परिवार के लिए एवं समाज के लिए हितकारी रहे हैं । परिवार की समुचित आवश्यकता निर्धारण पूर्ति के लिए कई बार मानसिक तनाव की लकीरें तो हम सभी ने देखी ही हैं उनके ललाट पर ।
कई बार विचारों में उलझे हुए एवं उनका समाधान करते हुए देखा ही है आप सभी ने । अपने अस्तित्व के उत्पादक, संरक्षक, एवं प्रभाव रूपी विषय पर चिंतन करने के लिए क्या आज पीढ़ी के लिए समय बचा है या इस चकाचौंध में समय की अल्पता से हम हमारे पूर्वजों को आज याद कर रहे हैं । यह दिन सिर्फ मनाने का विषय नहीं है, यह संपूर्ण रूप से समर्पण का विषय है , हमारा एक एक कतरा उनके प्रति समर्पित हो जो जीवन भर हमारे लिए उत्तरदाई रहे हो ।
हम सभी का कर्तव्य है की देवों से भी उच्च स्थान पर आसीन पिता को सिर्फ धर्म से ही नहीं अपने कर्मों से भी उच्च स्थान देने का विचार हमारी आत्मा और मन में सुरक्षित रहना चाहिए। भगवान गणेश ने अपने पिता शंकर जी की परिक्रमा को ही पूरी सृष्टि के तुल्य माना था , पिता के चरणों में स्वर्ग जैसी संतुष्टि है और इसका प्रायोगिक त्रैकालिक सत्य के रूप में कभी भी किया जा सकता है । “आपने हमारे लिए क्या किया” ऐसे करण भेदी शब्दों से कृतघ्नता का भाव पैदा ना होने दें । ऐसी ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे । सम्मान एवं समर्पण की प्रक्रिया सतत है , “जो बोएगा वही पाएगा ” प्राकृतिक सत्य है, इस पिता दिवस पर बस इतना ही संदेश हम सभी अपने परिवार की प्रतिष्ठा के अनुरूप कार्य करें और किंचित भी समाज के लिए स्वयं को उपलब्ध करा सकें तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी ।।।।।💐💐
*डॉ अखलेश भार्गव*
प्रोफेसर शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज इंदौर*
