रिपोर्ट नलिन दीक्षित
फोर्ड मोटर कंपनी ने साल 2021 में भारत से विदाई ले ली थी. अब कंपनी भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर में फिर से एंट्री लेने वाली है।
100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है भारत का ऑटो कंपोनेंट निर्यात।
भारत के ऑटो पार्ट्स और मेडिकल उपकरणों के निर्यात में मजबूत वृद्धि, FY24 में ऑटो पार्ट्स का निर्यात 7.7 अरब डॉलर तक पहुँचा
पिछले तीन वर्षों में भारत के ऑटो कंपोनेंट्स और मेडिकल एवं वैज्ञानिक उपकरणों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
FY24 में ऑटो पार्ट्स का निर्यात बढ़कर 7.7 अरब डॉलर हो गया, जबकि FY22 में यह 6.88 अरब डॉलर था।
अमेरिका, तुर्की, जर्मनी, मैक्सिको और ब्राजील प्रमुख बाजार रहे।
भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग में बदलाव विशेष रूप से मोटरसाइकिल पार्ट्स और एक्सेसरीज़ के निर्यात और आयात में देखा गया है। पहले भारत इन पर आयात निर्भरता रखता था, लेकिन अब निर्यात को बढ़ावा देकर विदेशी निर्भरता कम कर रहा है।
FY25 के अप्रैल-जनवरी अवधि में मोटरसाइकिल पार्ट्स और एक्सेसरीज़ का निर्यात 27.09% बढ़कर 709.22 मिलियन डॉलर हो गया, जबकि FY22 की इसी अवधि में यह 558.05 मिलियन डॉलर था।
स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी भारत ने आयात पर निर्भरता कम करते हुए निर्यात को बढ़ावा दिया है।
FY24 में मेडिकल और वैज्ञानिक उपकरणों का निर्यात बढ़कर 2.43 अरब डॉलर हो गया, जो कि FY22 में 1.73 अरब डॉलर था। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, यूएई और रूस शीर्ष निर्यात बाजार बने रहे।
यह वृद्धि दर्शाती है कि भारत इस क्षेत्र में लगातार वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
भारत के कुल निर्यात में गिरावट के बावजूद कुछ क्षेत्रों ने शानदार प्रदर्शन किया।
विशेष रूप से, खाद्य उत्पादों में कॉफी निर्यात सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र रहा। FY25 के अप्रैल-फरवरी अवधि में इसमें 40.6% की वृद्धि दर्ज की गई। जिससे कुल निर्यात 1.54 अरब डॉलर तक पहुँच गया। इसमें इटली की 19.01% हिस्सेदारी रही, जबकि जर्मनी 12.42% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
भारत का निर्यात प्रदर्शन दर्शाता है कि ऑटो पार्ट्स, चिकित्सा उपकरण और कृषि उत्पादों जैसे क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देने से भारत वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।
दिग्गज अमेरिकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड (Ford) एक बार फिर से भारत में वापसी कर सकती है। हालांकि, इस बार फोर्ड अपने चेन्नई प्लांट का इस्तेमाल कारों के प्रोडक्शन की बजाय इंजन और इसके पार्ट्स बनाकर निर्यात करने में करेगी। फोर्ड ने साल 1995 में भारत में ऑपरेशन शुरू किया। एक समय फोर्ड के चेन्नई प्लांट में 200,000 वाहनों की सालाना प्रोडक्शन कैपेसिटी थी। वहीं, साणंद प्लांट के लिए 240,000 वाहन और 270,000 इंजन थे।