इंदौर नगर निगम में भ्रष्टाचार के नए-नए खेल उजागर हो रहे हैं इस खेल की नई खिलाड़ी निकली पूर्व कमिश्नर प्रतिभा पाल।
प्रतिभा पाल IAS के खिलाफ EOW जांच के लिए इंदौर के मेयर ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा ।
भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के नगर निगम में एक के बाद एक घोटाले का खुलासा हो रहा है। फर्जी बिल घोटाला के बाद वेस्ट मैनेजमेंट घोटाला सामने आया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी एवं तत्कालीन इंदौर नगर निगम आयुक्त प्रतिभा पाल इस मामले के केंद्र में है। इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को इस मामले की EOW या लोकायुक्त से जांच करवाने हेतु पत्र लिखा है।
मध्य प्रदेश के इंदौर में कचरा घोटाला
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को कचरे की सफाई के लिए लगातार अवार्ड मिल रहा है परंतु इसी इंदौर में वेस्ट मैनेजमेंट यानी कचरे के प्रबंधन के मामले में घोटाला हो गया है। इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि, साल 2018 में देवगुराडिया में सूखे कचरे के निपटान के लिए स्मार्ट सिटी ने टेंडर बुलाए थे, अक्टूबर 2018 में यह टेंडर सिंगल होने के बाद भी कंपनी Nepra Resource Management Private Limited (NRMPL) को दे दिया गया। इस टेंडर की शर्त में था कि रायल्टी डिफाल्ट होने और अनुबंध की शर्त का पालन नहीं होने पर अनुबंध निरस्त होगा, लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने 30 जुलाई 2021 की तारीख में 4.42 करोड़ की रायल्टी बकाया होने के बाद भी टेंडर निरस्त नहीं किया। उलटे 27 दिसंबर 2021 को नेहरू पार्क में बोर्ड बैठक बुलाई और टेंडर को सात साल के लिए आगे बढ़ाने का फैसला ले लिया। यह फैसला अनुबंध की शर्तों के विपरीत था और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने अपनी मर्यादा के का उल्लंघन करते हुए या फैसला लिया था। अधिकारियों द्वारा सिस्टम की घोर उपेक्षा का यह उदाहरण है। इसके कारण राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया गया और निजी संस्था के साथ मिलकर साजिश रची गई है। इसलिए इसकी स्पेशल जांच एजेंसी से जांच कराना जरूरी है। यह मप्र शासन के साथ धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।
उल्लेखनीय है कि, इंदौर नगर निगम की तत्कालीन आयुक्त प्रतिभा पाल बोर्ड की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थी। इसलिए माना जा रहा है कि यह गड़बड़ी प्रतिभा पाल की जानकारी में और उनकी मर्जी से हुई है। श्री भार्गव का कहना है कि, पूर्व निगमायुक्त प्रतिभा पाल और स्मार्ट सिटी के अफसरों के द्वारा वेस्ट मैनेजमेंट एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को धता बताते हुए एजेंसी का अनुबंध सात सालो के लिए बढ़ा दिया। जबकि एजेंसी का मूल अनुबंध पूरा होने में तीन साल से अधिक का समय बाकी था। मूल अनुबंध की शर्तो पर ही एजेंसी को कोरोना अवधि के 22 महीने के साथ सात साल अर्थात लगभग 9 सालों तक काम करने का ठेका बाले बाले दे दिया गया। जबकि एजेंसी द्वारा निगम को देय रॉयल्टी की राशि करोड़ो रुपए बकाया थी। निगम की बकाया राशि को अनदेखा करते हुए स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने एजेंसी को फायदा पहुंचाया गया।
इंदौर के मेयर ने कलेक्टर इंदौर से कंपनी का टेंडर निरस्त करने और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से मामले की निष्पक्ष जांच करवाने के लिए पत्र लिखा है।