रिपोर्ट नलिन दीक्षित
ओटावा करवा सकता है मध्यावधि चुनाव
मोहम्मद युनूस को बताना होगा-बांग्लादेश में हिन्दू सुरक्षित क्यों नहीं?
न्यूयार्क। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की विजय के बाद इसका विश्वस्तर पर व्यापक असर पड़ता दिखाई दे रहा है। उत्तरी अमेरिका के देश कनाडा में मध्यावधि की संभावनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वहीं जर्मनी में तो बुधवार शाम को ही सरकार में अस्थिरता आ गयी और मार्च में चुनाव होने की आशा है।
कनाडा और अमेरिका 8 हजार किमी अंतरराष्ट्रीय सीमा को साझा करते हैं। दोनों पड़ोसी देश नाटो के सदस्य होने के नाते स्वयं को एक अच्छा पड़ोसी होने के ‘अनुभव’ को दुनिया के सामने रखते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रवासी लोगों के अमेरिका में प्रवेश को रोकने की नीति को अपनाया है और अमेरिका फस्र्ट को लागू करने का वचन दिया है, इससे कनाडा में हडक़म्प मचा हुआ है। वहां पर इस समय वामपंथी सरकार है और लिब्रल का नेतृत्व जस्टिन ट्रेडू कर रहे हैं। ट्रम्प और ट्रूडो के बीच रिश्ते सहज नहीं है।
ट्रम्प को इस बात का इल्म है कि वामपंथी विचाराधारा वाले ट्रूडो ने पूर्ववर्ती सरकार के साथ मिलकर किस तरह से अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाया और कनाडा से अमेरिका में लाखों लोगों का अवैध रूप से प्रवेश हुआ। ट्रूडो सरकार इसको रोक सकती थी, किंतु नहीं रोका गया।
कनाडा में इस समय मौजूदा सरकार श्वेत के साथ-साथ हिन्दुओं के विरोध का भी सामना कर रही है। इसका कारण है खालीस्तानी समर्थकों को ज्यादा तवज्जो देना। ट्रम्प पूर्व में ही बार-बार कह चुके हैं आई लव हिन्दू, आई लव इंडिया। हिन्दुओं के प्रति ट्रम्प और इवांका का प्यार किसी से छुपा हुआ नहीं रहा है। इसी कारण उन्होंने जेडी वेंस को अपना उपराष्ट्रपति चुना है जिनकी पत्नी एक हिन्दु परिवार की पुत्री है। कमला हैरिस एक अश्वेत पिता की पुत्री थीं तो ऊषा एक हिन्दु मां-बाप की संतान है।
बरसों से कनाडा में रहने वाले पंजाबी समुदाय और हाल ही में वहां पर जाकर बसने वाले हिन्दू लोग ट्रूडो की नीतियों से प्रसन्न नहीं हैं। वे लिब्रल के नाम पर इस्लामिक कट्टरपंथियों को भी कनाडा में बसा रहे हैं और यह हालात वहां आने वाले वर्षों में श्वेत कनाडाई लोगों के लिए भी खतरनाक होंगे। इंग्लेण्ड इसका ताजा उदाहरण दुनिया के सामने है।
लिब्रल पार्टी में ट्रम्प की जीत को लेकर चर्चा हो रही है और भय भी है। मध्यावधि चुनावों की संभावनाओं को कोई भी खारिज नहीं कर रहा है। कंजरेटिव पार्टी इसका लाभ उठाने की पूरी कोशिश में है और संभव है कि वहां पर अगले वर्ष के चुनावों में रूढ़ीवादियों की वापसी हो।
दूसरी ओर जर्मन में तो चांसलर ओलाफ स्कोल्ज की सरकार पर संकट मंडरा गया है। यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मन में वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर को चांसलर ने बर्खास्त कर दिया और इसके साथ ही गठबंधन वाली सत्तारूढ़ सरकार पर संकट मंडरा गया है। ट्रम्प की जीत वाले दिन ही जर्मन सरकार पर संकट आने को कई मायनों में देखा जा रहा है। वहीं सच यह भी है कि चांसलर ओलाफ अपनी लोकप्रियता खो रहे थे और विपक्षी पार्टी वहां पर चुनावों में विजय हासिल कर सकती है। मार्च माह में चुनाव हो सकते हैं।
इसी तरह से बांग्लादेश सरकार के कार्यवाहक मुखिया मोहम्मद युनूस पर भी संकट गहरा गया है हालांकि बांग्लादेशी मीडिया मान रहा है कि ट्रम्प प्रशासन अपने प्रथम वर्ष में विदेश नीति पर कम अमेरिका के आंतरिक मामलों में ज्यादा व्यस्त रहेगी, किंतु मीडिया का आकलन गलत साबित हो सकता है। ट्रम्प पिछले 10 सालों से दक्षिण एशिया की राजनीति पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं और उनको इस पर ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। अब वे परिपक्व राष्ट्रपति के रूप में सामने आयेंगे। वे चार साल पूर्व सत्ता में रह चुके हैं। उनको ध्यान है कि दक्षिण एशिया में अमेरिका के लिए क्या चुनौतियां हैं।
अमेरिका में वामपंथी सरकार के समय जिस तरह से नोबल पुरस्कार विजेता के नाम पर कट्टरपंथी विचारधारा वाले मोहम्मद युनूस की नियुक्ति हुई थी, उसी तरह से उनकी विदाई भी तय हो गयी है। संभव है कि जिस तरह से ढाका हिन्दुओं पर हुए हमलों को नहीं रोका पाया, इस पर यूनुस से जब दुनिया के वीटो पॉवर वाले डोनाल्ड ट्रम्प सवाल करेंगे तो उनसे कोई जवाब नहीं बन पायेगा।
अमेरिका ने बांग्ब्लादेश में सीधे तौर पर राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की हैं और वह नई दिल्ली से ही अपनी नीतियों का संचालन करता है और ट्रम्प की जीत यूनूस के लिए एक बड़ा संदेश है। संभव है कि जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद संभालने से पूर्व ही ढाका में नयी सरकार का भी गठन हो जाये।
वहीं मध्य एशिया में देखा जाये तो ईरान के लोग मान रहे हैं कि ट्रम्प प्रशासन उनके देश पर ज्यादा प्रतिबंध लगा सकते हैं। ईरान की मुद्रा और गिर गयी है। एक डॉलर की कीमत करीबन 7 लाख ईरानी मुद्रा हो गयी है। वहीं भारत और इजरायल में ट्रम्प की जीत को अपने पक्ष के रूप में देखा जा रहा है।
बाइडेन ने फोन कर ट्रम्प को दी बधाई
वाशिंगटन। अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति ने नवनिर्वाचित प्रेजीडेंट डोनाल्ड ट्रम्प को फोन कर बधाई दी है और व्हाइट हाउस में सत्ता हस्तांतरण के लिए वार्ता आयोजन का प्रस्ताव किया है।
ट्रम्प चुनाव अभियान की ओर से उपलब्ध करवायी गयी जानकारी में बताया गया है कि पारंपरिक नीति के तहत जो बाइडेन ने सत्ता हस्तांतरण के लिए डोनाल्ड ट्रम्प से फोन पर सम्पर्क साधा। उनको जीत पर बधाई दी। वहीं उनको व्हाइट हाउस आने के लिए आमंत्रित किया ताकि सत्ता हस्तांतरण के लिए प्रक्रिया को आरंभ किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि सत्ता हस्तांतरण के लिए ट्रम्प अपने मंत्रीमंडल को नामित करेंगे। उनकी टीम का गठन शीघ्र होने की संभावना है। भारतीय मूल की डेमोक्रेटिक नेता रहीं और हाल ही में ट्रम्प के चुनाव प्रचार अभियान का हिस्सा बनी तुलसी गैबार्ड को भी मंत्रीमंडल में स्थान मिल सकता है। माइक पोम्पियो जो उनके पिछले कार्यकाल में विदेश मंत्री थे, इस बार भी कोई भूमिका निभा सकते हैं।