डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूतों में से एक थे। उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, नैतिकता और समर्पण के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को संगठित किया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक सम्मानित परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा में प्रख्यात संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की और विभिन्न विषयों में मास्टर्स की डिग्री हासिल की।
डॉ. प्रसाद ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ संघर्ष किया और गांधीजी के साथ भीड़ते रहे। उन्होंने अपनी नेतृत्व में बिहार की जनता को जागरूक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1946 में, डॉ. प्रसाद को प्रथम भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में अपनी प्रशासकीय क्षमता और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी संवेदनशीलता का प्रदर्शन किया।
उनके योगदान ने देश को एक मजबूत और समृद्ध गणराज्य की दिशा में बढ़ावा दिया। उन्हें ‘राष्ट्रपति’ के रूप में न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि विश्व स्तर पर भी मान्यता और सम्मान प्राप्त हुआ।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का 28 फरवरी, 1963 को निधन हो गया, लेकिन उनकी सोच और कार्यों का प्रभाव आज भी हमारे देश में महसूस होता है। उनके महान योगदान ने देश को निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन किया और उन्हें भारतीय इतिहास के स्तंभ माना जाता है।