रिपोर्ट नलिन दीक्षित
जिसमें से 24 लोकसभा में और 16 राज्यसभा में हैं।
तथा, ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि दोनों सदनों में मौजूद ये सांसद (भाजपा के राज्यसभा सांसद गुलाम अली को छोड़कर) विभिन्न पार्टियों और विभिन्न प्रदेशों से होने के बावजूद भी एक सुर में वक्फ बोर्ड में किये गए संशोधन का विरोध किया।
जबकि, इसके अलावा संसद में 503 सांसद गैर-अल्पसंख्यक (मुख्यतः हिन्दू) थे जिसमें से मात्र 288 ने ही वक्फ बोर्ड में संशोधन की सहमति दी
खैर, एक सेकेंड के लिए ये कल्पना करें कि अगर स्थिति उल्टी होती और संसद में 503 अल्पसंख्यक सांसद होते और किसी हिन्दू बोर्ड पर चर्चा हो रही होती तो आपको क्या लगता है कि क्या होता।
मेरे ख्याल से … ऐसे में कोई चर्चा-फर्चा नहीं होती बल्कि 2 मिनट में पूरे बोर्ड को निरस्त कर सारे पूजास्थल ढहा दिए जाते और सारी जमीन पर कब्जा कर ली जाती,
लेकिन, हम चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकते।
और, इसका कारण ये नहीं है, कि हम कमजोर हैं, शांति के कबूतर उड़ाने वाले हैं, अथवा डरपोक हैं।
बल्कि, इसका कारण ये है कि हिन्दू इतनी कमअक्ल, स्वार्थी और आत्मघाती कौम है कि वो खुद अपने लिए कब्र का इंतजाम करती है।
और, बाद में दूसरों को (भाजपा, संघ, नसीब या परिस्थिति को) कोसती है।
क्योंकि, सबसे मुख्य सवाल ये है कि ऐसे खतरनाक वक्फ बोर्ड का समर्थन करने वाले लोग आखिर संसद में पहुंचे कैसे
जाहिर सी बात है कि… हमने और आपने ही उन्हें वोट देकर संसद में भेजा है।
अगर, आपको इस बात पर जरा भी संदेह हो तो आप खुद अपनी टाइमलाइन ही चेक करके देख लो जहाँ आज भी आपको ऐसी पार्टियों के हजारों समर्थक आपको दिख जाएँगे जो हैं तो हिन्दू ही।
लेकिन, विभिन्न कारणों से (चाहे वो पैसा हो, पावर हो , जाति हो या कुछ और हो) ऐसी धर्मद्रोही पार्टियों का बेशर्मी से समर्थन करते दिख जाएँगे।
ऐसे में दोष किसका है। उनका या फिर, खुद हम हिंन्दूओं का।