रूपेंद्र सिंह चौहान इंदौर।
मूर्ति में दिखती हैं जीवन की चारों अवस्थाएं ।
भोलेनाथ के भक्तों को बहुत प्रिय है ये स्वरूप।
मंदसौर : शिवना
नदी के तट पर भगवान पशुपतिनाथ का जगप्रसिद्ध मंदिर है। यहां विश्व की एकमात्र भोलेनाथ की अष्टमुखी मूर्ति है। यह पांचवीं सदी में निर्मित बताई जाती है। आक्रमणकारियों के भय से इसे शिवना नदी में छुपा दिया गया था, जो वर्ष 1940 में बाहर निकाली गई। 1961 में मार्ग शीर्ष कृष्ण पंचमी पर मूर्ति को विधिवत वर्तमान मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया था। 20 नवंबर को मंदिर का 64वां प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया जाएगा।
भगवान शिव की मूर्ति के आठ मुख, जीवन की चार अवस्थाओं का वर्णन करते हैं। पूर्व का मुख बाल्यवस्था, दक्षिण का किशोरावस्था, पश्चिम का युवावस्था और उत्तर का मुख प्रौढ़ा अवस्था के रूप में दिखता है। 19 जून 1940 को शिवना नदी से इस अष्टमुखी मूर्ति को निकाला गया
मंदसौर में मंदिर के गर्भगृह में विराजित श्री पशुपतिनाथ महादेव। इसके बाद 21 साल तक भगवान पशुपतिनाथ की मूर्ति नदी के तट पर ही रखी रही।
सम्राट यशोधर्मन के काल में मूर्ति का हुआ था निर्माण: इतिहासकारों की मानें
आठों मुख का नामकरण भी है
मूर्ति के आठों मुख का नामकरण भगवान शिव के अष्ट तत्व के अनुसार किया गया है।
इनमें शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव के रूप में पूजे जा रहे हैं। श्रावण मास में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है।
तो इस मूर्ति का निर्माण विक्रम संवत 575 ई. के आसपास सम्राट यशोधर्मन के काल में हुआ होगा। बाद में मूर्ति भंजकों से बचाने के लिए इसे शिवना नदी में बहा दिया गया होगा। कलाकार ने मूर्ति के ऊपर के चार मुख पूरी तरह बना दिए थे, जबकि नीचे के चार मुख निर्माणाधीन थे। मंदसौर के पशुपतिनाथ की तुलना काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से की जाती है।