नमामि गंगे नमामि नर्मदे
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।10। 31।।
श्रीमद भागवत गीता के दशम अध्याय में श्री कृष्ण कहते है कि वे पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ और शस्त्र चलाने वालों में मैं भगवान श्रीराम हूँ, जलीय जीवों में मगर और बहती नदियों में गंगा हूँ।
हिमालय की गोद से निकल कर बंगाल की खाड़ी में जा कर मिलाने वाली पुण्य सलिल गंगा का भारतीय धर्म और संस्कृति में विशेष महत्व है। इसके किनारे न जाने कितने सभ्यताओ का जन्म हुआ और कितने नगर बसे। जिनके वैभवशाली इतिहास आज भी उसके यत्र तत्र बिखरे पड़े है। जिसके तटो पर न जाने कितने ऋषि मुनियों ने तप कर ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति की है। आदिकाल से इस धरा पर पुण्य के प्रतिक के रूप में बह रही गंगा आज भी अपने निर्मल जल से भारतीय सभ्यता और संस्कृति को सींच रही है। गंगा, महज़ एक नदी नहीं है।
ये भारत की पहचान है। करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। यही वजह है कि हम न सिर्फ गंगा को माँ मानते है बल्कि हर उस नदी को माँ का दर्जा देते है जो हमारा पालन- पोषण करती है, वरन प्रकृति की पूजा अर्चन करते है। जल, जंगल, जमीन हमारी धर्मं और आस्था के केंद्र में निहित है। यही कारण है कि पुण्य माने जाने वाली नदियों (कुम्भ, सिहंस्थ जैसे आयोजन) के किनारे बड़े धार्मिक आयोजन होते है जो हमारी सांस्कृतिक सभ्यता का उदाहरण है।
हमारे धर्म पुराणों में तो कहा गया है की सबसे बड़ा पुण्य गंगा स्नान करने का है लेकिन उससे ज्यादा भी पुण्य तब मिलता है जब हम गंगा दशहरे (गंगा अवतरण दिवस) पर गंगा स्नान करते है। गंगा के किनारे बने ऐसे कई घाट है,जहां स्नान करने का बड़ा ही धार्मिक महत्त्व है पर मध्यप्रदेश के मालवा निमाड़ अंचल में भी ऐसे कुछ स्थल है जहां गंगा दशहरा पर हजारो लोगो पुण्य कमाने के लिए आते है और आस्था की डूबकी लगाकर अपने पापो को धोते है।
इंदौर संभाग में ऐसे दो महत्वपूर्ण स्थल हैं, जहाँ जीवन दायिनी माँ नर्मदा से पतित पावन माँ गंगा मिलने आती है। इन्हीं में से एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहाँ माँ गंगा का जल, सागर का जल और नर्मदा का जल मिलकर त्रिवेणी का रूप लेता है। धार्मिक और पौराणिक महत्व का यह अदभूत स्थान बड़वाह से कोई 15 किलोमीटर दूर माँ नर्मदा के पावन तट पर स्थित है ग्राम गंगातखेड़ी। इस गाँव का धार्मिक और पौराणिक महत्व है। यहाँ प्रतिवर्ष गंगा दशमी के दिन मेला लगता है।
पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वर्ष में एक बार गंगाजी नर्मदाजी से मिलने के लिये स्वयं आती है।गंगा दशमी के दिन नर्मदा में स्नान करने से दोनों नदियों का पुण्य फल प्राप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस स्थान पर ऋषि मतंग ने तपस्या एवं यज्ञ किया था। जिसमें पूरे देश से ऋषि मुनि एकत्रित हुए थे। उनमें से कुछ सन्तों ने कहा कि हम गंगा तट से आये हैं। नियमित गंगा जल एवं पूजन के बिना कुछ ग्रहण नहीं करते हैं। इसी प्रकार कई संतों ने सागर जल से स्नान की बात कही। ऋषि मतंग ने अपने तपोबल से यहां नर्मदा में गंगाजल एवं समुद्र के खरे पानी की जल धारा प्रकट कर सन्तों के संकल्प को पूरा किया।
यहां नर्मदा नदी के ठीक बीच में गंगेश्वर महादेव के चबूतरे पर नर्मदा जल में दो जलधारा स्पष्ट देखी जा सकती है, नर्मदा की जलधारा पूर्व से पश्चिम दिशा में बह रही है, वहीं नर्मदा की जलधारा उल्टी दिशा पश्चिम से पूर्व में बहती हुई गंगेश्वर महादेव के चबूतरे की परिक्रमा करती हुयी दिखाई देती है।
इसी प्रकार तट के पूर्व की ओर कुछ आगे किनारे के पास नर्मदा जल का स्वाद नमकीन (खार) बिल्कुल समुद्र के जल जैसा है। जमीन पर पानी सूखने पर नमक की हल्की परत दिखाई देती, जिसका स्वाद भी नमकीन है।
इस स्थान का विशेष धार्मिक महत्व है।वे लोग जो किसी कारण अथवा आर्थिक रूप से गंगाजी नहीं जा पाते, वे यहां स्नान पूजन कर गंगा जी के स्नान एवं पूजन का लाभ लेते हैं। मनोकामना करते है। अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर स्नान के लिये पून: आते भी हैं। इसके अलावा कई लोग अपने मृत परिजनों के अस्थि फूल गंगा जी में प्रवाहित नहीं कर पाते है, वे यहां आकर अस्थि फूल गंगा जी का स्मरण कर समर्पित करते हैं।
वही धार जिले के मनावर विकासखण्ड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर गांगली नाम का गाँव है। जीवनदायिनी माँ नर्मदा के पावन तट पर बसे इस गांव में गंगा कुंड है। इस कुण्ड का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यहाँ प्रतिवर्ष गंगा दशहरा के पावन पर्व पर मेला आयोजित किया जाता है। कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु स्नान के लिये आते हैं। शिव पुराण के अनुसार इस स्थान को माँ नर्मदा एवं माँ गंगा का मिलन स्थल बताया गया है।
नर्मदा पुराण कथा में इस स्थान का उल्लेख गांगलोद, गांगलगड़, गागली गांव के नाम से उल्लेखित है। शिव पुराण एवं नर्मदा पुराण के अनुसार इस स्थान पर गंगा जी का उद्गम माना गया है। प्रचलित कथा के अनुसार एक तपस्वी ऋषि द्वारा नर्मदा परिक्रमा की जा रही थी, उस दौरान तपस्वी ऋषि के कमण्डल में पानी खत्म हो गया। यह ऋषि केवल गंगा जल ही ग्रहण करते थे। उन्होंने उस दौरान भगवान भोलेनाथ की साधना की। उनसे प्रार्थना की कि मेरी नर्मदा परिक्रमा अभी अधूरी है या तो मैं अपनी परिक्रमा को छोड़कर गंगा जल लेने हरिद्वार जाऊं या फिर आप मेरे लिये गंगा जल लाये। उसी समय इस स्थान पर गंगा जी का उद्गम हुआ । यही वह स्थान है जो आज गंगा कुंड के नाम से जाना जाता है।
एक और कथा भी है। जिसमें माँ गंगा शिव जी से प्रार्थना करती है कि मैं सारी उम्र संसार वासियों के पाप धोने का काम करूंगी, पर मेरे पाप कौन धोएगा, जब शिवजी ने माँ गंगा से कहा कि तुम्हारे पाप नर्मदा धोएगी। कथा अनुसार माँ गगा को दिया वरदान एवं तपस्वी ऋषि की साधना एक साथ पूरी हो गयी।
एक मान्यता है कि माँ गंगा ने बाल विधवा ऋषिका को ज्येष्ठ माह की दशमी में गंगा कुंड आने का वरदान दिया था। इस कारण भी इस कुंड को गंगाझिरी या गंगा कुंड कहते हैं। गांव में गंगा कुंड होने से गांव का नाम भी गांगली हुआ। मान्यता है कि गांगली में गंगा कुंड में स्नान करने पर नर्मदा स्नान का भी पुण्य लाभ एक साथ मिलता है। यहां साक्षात माँ गंगा और नर्मदा का संगम है। शिव पुराण में उल्लेख है कि ऋषिका नाम की एक ब्राम्हणी थी। पति के मौत के बाद इस बाल विधवा ने शिव की आराधना की। पार्थिव शिवलिंग इसकी निशानी है। मुड नामक राक्षस हमेशा उनकी पूजा में विघ्न डालता था। एक बार जो ऋषिका को परेशान कर रहा था, तब उन्होंने आराध्य शिव को पुकार कर सहायता मांगी। भगवान शिव प्रकट हुए अैर राक्षस को जलाकर भस्म कर दिया। इस दौरान सभी देवी देवता उपस्थित थे। भगवान शिव ने ऋषिका को दो वरदान मांगने को कहा ऋषिका ने अनन्य भक्ति प्रदान करने और लोकहित में पार्थिव शिवलिंग में सदा स्थिर रहने का वरदान मांगा था। गंगा कुंड के समीप पहाड़ी पर बना नंदकेश्वर महादेव मंदिर ढाई सौ साल पुराना है। भगवान शिव ने ऋषिका से कहा था कि देवी गंगा इस कुंड में और इस घाट पर मानव रूप में आएंगी। देवी गंगा ने उन्हें ज्येष्ठ माह दशमी पर यहां आकर श्रद्धालुओं को पावन करने का वरदान दिया था।
इसी स्थान पर माँ नर्मदा के तट पर प्राचीन नन्दीकेश्वर महादेव मंदिर भी है। इस स्थान को नंदी एवं भगवान भोलेनाथ का मिलन स्थल बताया गया है। नंदी एवं शिव जी पहली बार इसी स्थान पर मिले थे। यहीं पर माँ नर्मदा में अवतरित शिव लिंग है। शिव जी के सारे भारत वर्ष में 24 अवतरित शिव लिंग है। इसमें 22 काशी विश्वनाथ में है एवं 23 वां अवतरित शिव लिंग गागली घाट पर है। इसकी भी एक कथा है। ऋषिका नाम की एक साध्वी थी। जिसने कई वर्षा तक शिव जी की आराधना इसी स्थान पर की थी और शिव जी अवतरित हुए।
श्री उत्तम स्वामी जी महाराज ने नर्मदा परिक्रमा के दौरान इसी स्थान पर रात्रि विश्राम किया था। उन्होंने इस दौरान इस स्थान की पौराणिक महत्व को साझा किया। उन्होंने इस गंगा कुंड में स्नान भी किया। श्री उत्तम स्वामी जी महाराज ने अपनी एक कथा में भी इस स्थान का महत्व बताया था। शिव कथा वाचक पं। प्रदीप जी मिश्रा भी शिव पुराण कथा में इस स्थान का पौराणिक महत्व बताते है। यह सरदार सरोवर बांध के बेक वाटर में तीन महीने तक जल मग्न रहता है।
जून माह के पहले पखवाड़े (ज्येष्ठ माह की दशमी) में आने वाले गंगा दशहरा पर्व पर श्रद्धालु निमाड़ की भीषण गर्मी की परवाह किये बगैर महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आदि के हजारों श्रद्धालुओं बड़े उत्साह और उम्मीदों के साथ आते हैं। यहाँ मन्नत मांगते नजर आते हैं। कुंड वाले स्थान पर का जमघट रहता है। भक्तों का मानना है कि गंगा दशहरे के दिन गंगा कुंड में स्नान करने और दान-पुण्य करने से पुण्य मिलता है।
जल संरचनाओं को सहेजने और संवारने के लिए जल गंगा संवर्धन अभियान
राज्य शासन के निर्देश पर इंदौर संभाग में भी जल संरचनाओं को सहेजने और संवारने के लिए जल गंगा अभियान गत 5 जून से प्रारंभ किया गया, यह अभियान वैसे तो गंगा दशमी के अवसर पर 16 जून को संपन्न हो रहा है पर इस अभियान के तहत लिए गए कार्य अनवरत जारी रहेंगे। इस अभियान के अंतर्गत तालाब, कुएं, बावड़ी और नदियों को गहरा कर उनकी जल क्षमता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किया जा रहे हैं। साथ ही वृक्षारोपण का बड़ा कार्य भी इस अभियान के तहत किया जा रहा है। नदी किनारे बने घाटों की भी साफ सफाई कराई गई।
इंदौर संभाग में 5138 जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार एवं गहरीकरण
इंदौर संभाग के सभी 8 जिलों के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत व्यापक कार्य किये जा रहे हैं। संभाग के ग्रामीण क्षेत्र के 54 जनपद पंचायत में 5138 जल संरचनाओं के नवीन कार्य प्रारंभ किए गए हैं। यह कार्य 73 करोड़ 72 लख रुपए के लागत से कराए जाएंगे। उपरोक्त कार्यों में से 1376 कार्य तालाब, स्टापडेम, कुआं/बावडियों के जीर्णोद्धार के है। अभियान में नदी किनारे घाट निर्माण के 7 कार्य और पुराने तालाब के गहरीकरण के 752 कार्य प्रारंभ कराये गए है, इनकी लागत 14.85 करोड़ रुपये है। तालाब में निकलने वाली मिट्टी गाद स्वयं के व्यय से किसान अपने खेतों में डाल रहे है। उपरोक्त कार्यों के अलावा नरेगा में पूर्व से प्रगतिरत कुल 10 हजार 803 कार्य जिनकी लागत 462 करोड़ रूपये है,
इनमें से अभियान के दौरान कुल 2500 कार्य पूर्ण कराये जा रहे है।
सफाई अभियानः
जल संरचनाओं एवं धार्मिक व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर विशेष सफाई अभियान चलाया जा रहा है, इसमें ग्रामीणों का पूरा सहयोग मिल रहा है। संभाग में 268 कुंआ बावड़ी, 65 नदी घाट एवं 782 सार्वजनिक व धार्मिक स्थलों पर श्रमदान से सफाई अभियान चलाया जा रहा है। स्थानीय जनप्रतिधियों एवं जनता के सहयोग से कार्य किये जा रहे है।
गंगादशमी कार्यक्रमः
गंगादशमी के अवसर पर प्रमुख जल स्रोत/नदी/तालाब/बावडियों के किनारे आरती, भजन व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किये जा रहे हैं। खरगोन जिले के महेश्वर जनपद के गंगातखेडी एवं धार के मनावर तहसील में ग्राम साततराई में इस अवसर पर वृहद धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम व वृक्षारोपण का आयोजन किया जा रहा है।
पौधारोपणः
संभाग की 54 जनपद पंचायतों में पौधारोपण के 405 कार्य नरेगा से स्वीकृत किये गए है। जिनकी लागत 7.5
करोड़ रुपये है, इनमें कुल 294 हेक्टेयर क्षेत्र में कुल 7.50 लाख पौधे लगाने की तैयारी कर ली है।
संभाग के 55 नगरीय निकायों में भी जल संरक्षण एवं संवर्धन के कार्य व्यापक स्तर पर जारी
इंदौर संभाग के ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ 55 नगरीय निकायों में भी जल संरक्षण एवं संवर्धन के कार्य व्यापक स्तर पर जारी है। जल संरक्षण एवं संवर्धन के 283 कार्यों पर 16 करोड़ 15 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसमें से 40 तालाबों को गहरा कर जल क्षमता में वृद्धि की जा रही है। इसी तरह 22 नदियों को भी गहरा किया जा रहा है। इसी प्रकार 135 कुएं तथा 49 बावडियों की साफ सफाई का काम भी हाथ में लिया गया है। साथ ही 37 स्टॉपडेम, रिचार्ज सॉफ्ट, एवं चेनलो की सफाई का कार्य भी किया जा रहा है। संभाग के सभी नगरीय निकायों में व्यापक स्तर पर पौधारोपण के कार्य भी हाथ में लिए गए हैं।
लेखक— दीपक सिंह
भारतीय प्रशासनिक सेवा , इंदौर संभागायुक्त ।