इंदौर । कार्यकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक ट्वीट “राम राम ” के गूढ़ सियासी मायने निकाले जा रहे हैं । एक , हाई कमान का रुख देखकर खुद शिवराज ने हथियार डालते हुए शिवा “राज”को राम-राम कहा या दूसारा, राज_ पाट के द्वार पर फिर दस्तक देते हुए सबको राम-राम कहा। या सीधे-सीधे हाई कमान ने शिवराज को राम-राम कह दिया …। जिसे उन्होंने स्वीकार कर सबको राम राम कह दिया। जैसा कि जीत का श्रेय लाडली बहन को देकर शिवराज जीत को अपनी सफलता बता रहे हैं तो वही केंद्र से आए प्रहलाद पटेल और संगठन के नेता कैलाश विजयवर्गीय जीत को मोदी की लहर का परिणाम बता रहे हैं यानी शिवराज के लिए संकेत स्पष्ट है। एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि करीब 18 बरस के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की भारी एंटी इनकंबेंसी के बाद वैसे ही शिवराज स्वयं को मुख्यमंत्री की दौड़ स अलग कर लेते। वह फायदे की स्थिति रहती। उन्हें फिर से मौका मिलता या ना मिलता दोनों स्थितियों में उनकी जीत रहती । अब विकट स्थिति हैं । किसी और के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी।
लोकसभा चुनाव के अभी अता पता नहीं है नहीं है फिर भी शिवराज चुनाव प्रचार पर निकल घर निकल गए। संकेत दो हो सकते है ।एक सत्ता से राम राम या फिर पुनः सा सत्ता द्वार पर दस्तक।
बेमतलब की राय सोमारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पूर्ण नियंत्रण वाली भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री चयन के लिए पर्यवेक्षक और रायशुमारी जैसी एक्सरसाइज का कोई ज्यादा मतलब नहीं है । जो भी नाम होगा वह पहले से ही विचार मंथन के बाद तय कर लिया गया होगा। इनके निर्णया के खिलाफ वैसे भी विरोध की ताकत बीजेपी नेताओं में नही है। पार्टी के वरिष्ठ जन और राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा में सब कुछ मोदी और शाह के विवेक अनुसार तय होता है । मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी मुख्यमंत्री करीब करीब तय हो चुके हैं ? फिभी राय शुमारी की उठा पटक की जा रही है सामान्य तौर परइसका कोई बड़ा मतलब नहीं है यह स्पष्ट है । ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए भीतर ही भीतर दावेदारो के तेवर तीखे है। बड़े नाम खंभ ठोक मैदान नहीं छोड़ना चाहते होंगे इसलिए राजकुमारी करनी पड़ रही है। जहां तक योग्य व्यक्ति के चयन का सवाल है लोकसभा चुनाव की रणनीति अनुसार मोदी हर राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए जातिगत समीकरण , लोकप्रियता, अनुभव, और सरकार संगठन के बीच तालमेल और नियंत्रण जैसे मापदंडों पर नेता तोले जाएंगे। मप्र मैं शिवराज सिंह चौहान की जगह नरेंद्र सिंह तोमर , प्रहलाद पटेल आदि जैसे नाम है तो वही ज्योतिराद आदित्य सिंधिया भी इस दौड़ में है । उन्होंने भाजपा में आने के बाद कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति बनाई जो चुनाव में ग्वालियर चंबल इलाके में कांग्रेस के नेताओं को हराने में सफल रही। राजस्थान में भी उनकी बुआ वसुंधरा राज्य मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं सिंधिया परिवार में से दो नेता मुख्यमंत्री पद की लडाई में है। भतीजे से ज्यादा ताकतवर और साहसी बुआ हे । पूरी बीजेपी में वे ही ऐसी वीरांगना नेत्री है जो मोदी और शहर से बराबरी को टक्कर देने का माद्दा रखती है।। यदि इनका दांव लगा तो परिवार से किसी एक को ही मौका मिलेगा।_
जूनियर सीनियर का समीकरण
___ मुख्यमंत्री चयन के बाद स्पष्ट होगा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री जूनियर होगा या सीनियर यदि नरेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री बनते हैं तो सबसे वरिष्ठ वही होंगे और उनके नीचे मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी नेता होंगे लेकिन यदि कोई जूनियर नेता मसलन सिंधिया जैसे जूनियर लीडर सीएम बनते हैं तो तोमर और अन्य वरिष्ठ नेताओं को एक जूनियर सीएम के नियंत्रण में काम करना होगा। जेसे मोदी के पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुआ।
इंदौर । कार्यकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक ट्वीट “राम राम ” के गूढ़ सियासी मायने निकाले जा रहे हैं । एक , हाई कमान का रुख देखकर खुद शिवराज ने हथियार डालते हुए शिवा “राज”को राम-राम कहा या दूसारा, राज_ पाट के द्वार पर फिर दस्तक देते हुए सबको राम-राम कहा। या सीधे-सीधे हाई कमान ने शिवराज को राम-राम कह दिया …। जिसे उन्होंने स्वीकार कर सबको राम राम कह दिया। जैसा कि जीत का श्रेय लाडली बहन को देकर शिवराज जीत को अपनी सफलता बता रहे हैं तो वही केंद्र से आए प्रहलाद पटेल और संगठन के नेता कैलाश विजयवर्गीय जीत को मोदी की लहर का परिणाम बता रहे हैं यानी शिवराज के लिए संकेत स्पष्ट है। एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि करीब 18 बरस के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की भारी एंटी इनकंबेंसी के बाद वैसे ही शिवराज स्वयं को मुख्यमंत्री की दौड़ स अलग कर लेते। वह फायदे की स्थिति रहती। उन्हें फिर से मौका मिलता या ना मिलता दोनों स्थितियों में उनकी जीत रहती । अब विकट स्थिति हैं । किसी और के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी।
लोकसभा चुनाव के अभी अता पता नहीं है नहीं है फिर भी शिवराज चुनाव प्रचार पर निकल घर निकल गए। संकेत दो हो सकते है ।एक सत्ता से राम राम या फिर पुनः सा सत्ता द्वार पर दस्तक।
बेमतलब की राय सोमारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पूर्ण नियंत्रण वाली भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री चयन के लिए पर्यवेक्षक और रायशुमारी जैसी एक्सरसाइज का कोई ज्यादा मतलब नहीं है । जो भी नाम होगा वह पहले से ही विचार मंथन के बाद तय कर लिया गया होगा। इनके निर्णया के खिलाफ वैसे भी विरोध की ताकत बीजेपी नेताओं में नही है। पार्टी के वरिष्ठ जन और राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा में सब कुछ मोदी और शाह के विवेक अनुसार तय होता है । मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी मुख्यमंत्री करीब करीब तय हो चुके हैं ? फिभी राय शुमारी की उठा पटक की जा रही है सामान्य तौर परइसका कोई बड़ा मतलब नहीं है यह स्पष्ट है । ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए भीतर ही भीतर दावेदारो के तेवर तीखे है। बड़े नाम खंभ ठोक मैदान नहीं छोड़ना चाहते होंगे इसलिए राजकुमारी करनी पड़ रही है। जहां तक योग्य व्यक्ति के चयन का सवाल है लोकसभा चुनाव की रणनीति अनुसार मोदी हर राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए जातिगत समीकरण , लोकप्रियता, अनुभव, और सरकार संगठन के बीच तालमेल और नियंत्रण जैसे मापदंडों पर नेता तोले जाएंगे। मप्र मैं शिवराज सिंह चौहान की जगह नरेंद्र सिंह तोमर , प्रहलाद पटेल आदि जैसे नाम है तो वही ज्योतिराद आदित्य सिंधिया भी इस दौड़ में है । उन्होंने भाजपा में आने के बाद कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति बनाई जो चुनाव में ग्वालियर चंबल इलाके में कांग्रेस के नेताओं को हराने में सफल रही। राजस्थान में भी उनकी बुआ वसुंधरा राज्य मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं सिंधिया परिवार में से दो नेता मुख्यमंत्री पद की लडाई में है। भतीजे से ज्यादा ताकतवर और साहसी बुआ हे । पूरी बीजेपी में वे ही ऐसी वीरांगना नेत्री है जो मोदी और शहर से बराबरी को टक्कर देने का माद्दा रखती है।। यदि इनका दांव लगा तो परिवार से किसी एक को ही मौका मिलेगा।_
जूनियर सीनियर का समीकरण
___ मुख्यमंत्री चयन के बाद स्पष्ट होगा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री जूनियर होगा या सीनियर यदि नरेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री बनते हैं तो सबसे वरिष्ठ वही होंगे और उनके नीचे मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी नेता होंगे लेकिन यदि कोई जूनियर नेता मसलन सिंधिया जैसे जूनियर लीडर सीएम बनते हैं तो तोमर और अन्य वरिष्ठ नेताओं को एक जूनियर सीएम के नियंत्रण में काम करना होगा। जेसे मोदी के पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुआ।
इंदौर । कार्यकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक ट्वीट “राम राम ” के गूढ़ सियासी मायने निकाले जा रहे हैं । एक , हाई कमान का रुख देखकर खुद शिवराज ने हथियार डालते हुए शिवा “राज”को राम-राम कहा या दूसारा, राज_ पाट के द्वार पर फिर दस्तक देते हुए सबको राम-राम कहा। या सीधे-सीधे हाई कमान ने शिवराज को राम-राम कह दिया …। जिसे उन्होंने स्वीकार कर सबको राम राम कह दिया। जैसा कि जीत का श्रेय लाडली बहन को देकर शिवराज जीत को अपनी सफलता बता रहे हैं तो वही केंद्र से आए प्रहलाद पटेल और संगठन के नेता कैलाश विजयवर्गीय जीत को मोदी की लहर का परिणाम बता रहे हैं यानी शिवराज के लिए संकेत स्पष्ट है। एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि करीब 18 बरस के मुख्यमंत्री के कार्यकाल की भारी एंटी इनकंबेंसी के बाद वैसे ही शिवराज स्वयं को मुख्यमंत्री की दौड़ स अलग कर लेते। वह फायदे की स्थिति रहती। उन्हें फिर से मौका मिलता या ना मिलता दोनों स्थितियों में उनकी जीत रहती । अब विकट स्थिति हैं । किसी और के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी।
लोकसभा चुनाव के अभी अता पता नहीं है नहीं है फिर भी शिवराज चुनाव प्रचार पर निकल घर निकल गए। संकेत दो हो सकते है ।एक सत्ता से राम राम या फिर पुनः सा सत्ता द्वार पर दस्तक।
बेमतलब की राय सोमारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पूर्ण नियंत्रण वाली भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री चयन के लिए पर्यवेक्षक और रायशुमारी जैसी एक्सरसाइज का कोई ज्यादा मतलब नहीं है । जो भी नाम होगा वह पहले से ही विचार मंथन के बाद तय कर लिया गया होगा। इनके निर्णया के खिलाफ वैसे भी विरोध की ताकत बीजेपी नेताओं में नही है। पार्टी के वरिष्ठ जन और राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा में सब कुछ मोदी और शाह के विवेक अनुसार तय होता है । मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी मुख्यमंत्री करीब करीब तय हो चुके हैं ? फिभी राय शुमारी की उठा पटक की जा रही है सामान्य तौर परइसका कोई बड़ा मतलब नहीं है यह स्पष्ट है । ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए भीतर ही भीतर दावेदारो के तेवर तीखे है। बड़े नाम खंभ ठोक मैदान नहीं छोड़ना चाहते होंगे इसलिए राजकुमारी करनी पड़ रही है। जहां तक योग्य व्यक्ति के चयन का सवाल है लोकसभा चुनाव की रणनीति अनुसार मोदी हर राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए जातिगत समीकरण , लोकप्रियता, अनुभव, और सरकार संगठन के बीच तालमेल और नियंत्रण जैसे मापदंडों पर नेता तोले जाएंगे। मप्र मैं शिवराज सिंह चौहान की जगह नरेंद्र सिंह तोमर , प्रहलाद पटेल आदि जैसे नाम है तो वही ज्योतिराद आदित्य सिंधिया भी इस दौड़ में है । उन्होंने भाजपा में आने के बाद कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति बनाई जो चुनाव में ग्वालियर चंबल इलाके में कांग्रेस के नेताओं को हराने में सफल रही। राजस्थान में भी उनकी बुआ वसुंधरा राज्य मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं सिंधिया परिवार में से दो नेता मुख्यमंत्री पद की लडाई में है। भतीजे से ज्यादा ताकतवर और साहसी बुआ हे । पूरी बीजेपी में वे ही ऐसी वीरांगना नेत्री है जो मोदी और शहर से बराबरी को टक्कर देने का माद्दा रखती है।। यदि इनका दांव लगा तो परिवार से किसी एक को ही मौका मिलेगा।_
जूनियर सीनियर का समीकरण
___ मुख्यमंत्री चयन के बाद स्पष्ट होगा कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री जूनियर होगा या सीनियर यदि नरेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री बनते हैं तो सबसे वरिष्ठ वही होंगे और उनके नीचे मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी नेता होंगे लेकिन यदि कोई जूनियर नेता मसलन सिंधिया जैसे जूनियर लीडर सीएम बनते हैं तो तोमर और अन्य वरिष्ठ नेताओं को एक जूनियर सीएम के नियंत्रण में काम करना होगा। जेसे मोदी के पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुआ।