रिपोर्ट नलिन दीक्षित
क्योंकि घर में बच्चों को जन्म देने वाली औरतों को ‘बहादुर’ मानते हैं मुस्लिम: ‘कठमुल्लापन’ में अस्पताल नहीं ले गया शौहर सिराजुद्दीन
केरल के मलप्पुरम की रहने वाली 35 साल की आसमाँ की पाँचवें बच्चे को जन्म देते समय मौत हो गई। शनिवार (5 अप्रैल 2025) को चिट्टीपरंबू के किराए के मकान में प्रसव के बाद उसकी हालत बिगड़ गई और उसकी साँसें थम गईं। आसमाँ का शौहर सिराजुद्दीन उसकी मौत के बाद शव को लेकर एर्नाकुलम के पेरुंबवूर अपने घर पहुँचा और चुपचाप दफनाने की कोशिश कर रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस ने तुरंत मौके पर पहुँचकर शव को कब्जे में लिया और पेरुंबवूर तालुक अस्पताल भेज दिया। आसमाँ का नवजात बच्चा अभी जिंदगी की जंग लड़ रहा है और उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। आसमाँ के घरवालों का आरोप है कि प्रसव के दौरान आसमाँ का खून बहुत बह गया, लेकिन सिराजुद्दीन उसे अस्पताल नहीं ले जाया। परिजनों का कहना है कि अगर सिराजुद्दीन वक्त पर अस्पताल ले जाता, तो शायद आसमाँ आज जिंदा होती।
सिराजुद्दीन ‘मदावुर काफिला’ नाम से यूट्यूब चैनल चलाता है और पारंपरिक चिकित्सा में उसका गहरा यकीन है। वो यूट्यूब पर घरेलू इलाज को लेकर ‘तकरीरें’ करता रहता है।
सिराजुद्दीन पर आरोप है कि उसने आसमाँ को जानबूझकर अस्पताल नहीं ले जाया, क्योंकि उसे मॉडर्न मेडिसिन से ज्यादा पुराने तरीकों पर भरोसा था। पुलिस इस बात की भी जाँच कर रही है कि क्या उसकी ये सोच आसमाँ की मौत की वजह बनी।
ये कोई पहला मामला नहीं है, जिसमें घर में बच्चे को जन्म देते समय मौत की बात सामने आई हो। केरल में बीते कुछ समय से मुस्लिम समुदाय के लोग बच्चे को घर में जन्म देने वाली महिलाओं को ‘बहादुर’ बताकर सम्मानित करते रहे हैं, ऐसे में केरल में इस तरह से मामलों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। बीते 5 साल में केरल में करीब 3000 ऐसी मौतें हो गई हैं। जिसमें ‘बहादुर’ बनने की कोशिश में उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया। इसमें से भी 1 तिहाई से अधिक मामले अकेले मलप्पुरम से सामने आए हैं।
रिपोर्ट्स की मानें, तो मलप्पुरम और केरल में इस तरह के मामलों में काफी तेजी आई है। अधिवक्ता कुलथुर जयसिंह के सूचना के अधिकार से पता चला कि 2019 से सितंबर 2024 तक केरल में 2931 घरेलू प्रसव हुए, जिनमें अकेले मलप्पुरम में 1244 मामले थे। इस दौरान 18 नवजात बच्चों की भी जान गई।
इसी तरह से कुछ समय पहले कोझिकोड में एक कार्यक्रम हुआ था। जहाँ घर पर प्रसव करने वाली महिलाओं को ‘बहादुर महिला’ कहकर सम्मानित किया गया। वहाँ कहा गया कि वो घर पर डिलीवरी को बढ़ावा नहीं दे रहे, बल्कि ‘प्राकृतिक प्रसव’ की खुशी मना रहे हैं।
पुलिस को शक है कि इस्लामी संगठनों से जुड़ा ये आयोजन भी ऐसे मामलों को प्रभावित कर सकता है, हालाँकि अभी पूरी जानकारी नहीं मिली है।
ऐसे मामलों में अक्सर परिवार का कहना होता है कि प्रसव जल्दी हो गया, इसलिए अस्पताल नहीं ले जा सके, लेकिन सच ये है। कि ये पहले से प्लान किए जाते हैं। खासकर मुस्लिम परिवारों में ये चलन तेजी से बढ़ रहा है।