रिपोर्ट नलिन दीक्षित
युद्धभूमि जब अधर्म, अत्याचार और विनाश से कंपायमान होती है, तब महाकाली का प्रकट होना केवल एक घटना नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन की पुनर्स्थापना का संकेत होता है ! “महाकाली”, जो समय से परे हैं, जिनका रूप प्रलयंकारी है, वे जब रणक्षेत्र में उतरती हैं, तो स्वयं समय ठहर जाता है और केवल नाश का तांडव शेष रहता है।
शास्त्रों में उल्लेखित महाकाली का स्वरूप उनके अद्भुत और भयावह तेज को दर्शाता है—गहन काजल-सी काली आभा, उन्मुक्त केश, रक्त से रंजित जिह्वा, और हाथों में खड्ग तथा नरमुंडों की माला ! वे केवल संहार नहीं करतीं, वे हर बंधन को तोड़ती हैं, वे सीमाओं को मिटाती हैं और पुरातन व्यवस्था को ध्वस्त कर नवयुग का संचार करती हैं।
जब रण में महाकाली का आगमन होता है।
तब यह केवल शस्त्रों का युद्ध नहीं होता, बल्कि यह न्याय और अन्याय के बीच अंतिम निर्णायक संघर्ष होता है ! वे विकराल रूप धरकर कुसंस्कारों, अहंकार, और पाशविक प्रवृत्तियों का अंत करती हैं।
उनके एक उग्र नृत्य से सम्पूर्ण दुष्ट शक्तियाँ ध्वस्त हो जाती हैं और धरा को नया जीवन प्राप्त होता है।
महाकाली केवल युद्ध की देवी नहीं हैं, वे अनंत ऊर्जा का प्रतीक हैं, वे आत्मा की शुद्धि हैं, वे भय को मिटाकर शक्ति का संचार करती हैं।
उनकी आराधना से शरणागत को निर्भीकता और अपराजेय साहस प्राप्त होता है।
रण में महाकाली का आवाहन केवल बाहरी शत्रुओं के विनाश के लिए नहीं होता, यह भीतर बसे अज्ञान, मोह और दुर्बलताओं के अंत के लिए भी आवश्यक है।
जब मनुष्य अपने भीतर की महाकाली को जागृत कर लेता है, तब वह जीवन के हर युद्ध को विजयी बना सकता है।
महाकाली का रण में प्रकट होना केवल पौराणिक घटना नहीं, यह हर युग में, हर समय, हर व्यक्ति के भीतर घटित हो सकता है।
जब भी न्याय का ह्रास होता है, जब भी सत्य पर आघात होता है।
तब महाकाली अपनी प्रचंडता के साथ प्रकट होती हैं। और प्रलय के माध्यम से नवसृजन का मार्ग प्रशस्त करती हैं।