रिपोर्ट नलिन दीक्षित
लेकिन कांग्रेसियों ने शव यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया था। हैरानी की बात है कि अभी भी अनेक नासमझ राष्ट्रभक्त मात्र राजनीति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने वाली कांग्रेस के साथ जुड़े हुये हैं।
कांग्रेस ने वामपंथियों के साथ मिलकर इतिहास के ऐसे वीरता के किस्से भारतीयों से क्यूं व किस मंशा से छुपाये गये। लेकिन आप अपने साथ अपने बच्चों को अवश्य पढ़ाये, क्योंकि बच्चे पढ़ेंगे तो ही जानेंगे
शेयर अवश्य कीजियेगा
एक अंग्रेज सुप्रीटेंडेंट ने चंद्रशेखर आजाद की मौत के बाद उनकी वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि चंद्रशेखर आजाद पर तीन तरफ से गोलियां चल रही थीं।
लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जिस तरह मोर्चा संभाला और 5 अंग्रेज सिपाहियों को हताहत कर दिया था।
वो अत्यंत उच्च कोटि के निशाने बाज थे।
अगर मुठभेड़ की शुरुआत में ही चंद्रशेखर आजाद की जांघ में गोली नहीं लगी होती तो शायद एक भी अंग्रेज सिपाही उस दिन जिंदा नहीं बचता*
शत्रु भी जिसके शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे। मातृभूमि के प्रति जिसके समर्पण की चर्चा पूरे देश में होती थी।
जिसकी बहादुरी के किस्से हिंदुस्तान के बच्चे-बच्चे की जुबान पर थे ।
उन महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल होने से इलाहाबाद के कांग्रेसियों ने ही इनकार कर दिया था।
उस समय के इलाहाबाद यानि आज का प्रयागराज इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जिस जामुन के पेड़ के पीछे से चंद्रशेखर आजाद निशाना लगा रहे थे।
उस जामुन के पेड़ की मिट्टी को लोग अपने घरों में ले जाकर रखते थे … उस जामुन के पेड़ की पत्तियों को तोड़कर लोग अपने सीने से लगा लेते थे।चंद्रशेखर आजाद की मृ्त्यु के बाद वो जामुन का पेड़ भी अब लोगों को प्रेरणा दे रहा था। इसीलिए अंग्रेजों ने उस जामुन के पेड़ को ही कटवा दिया।
लेकिन चंद्रशेखर आजाद के प्रति समर्पण का भाव देश के आम जनमानस में कभी कट नहीं सका।
जब इलाहाबाद (आज का प्रयागराज) की जनता अपने वीर चहेते क्रांतिकारी के शव के दर्शनों के लिए भारी मात्रा में जुट रही थी।
लोगों ने दुख से अपने सिर की पगड़ी उतार दी पैरों की खड़ाऊ और चप्पलें उताकर लोग नंगें पांव चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल हो रहे थे।
उस समय शहर के कांग्रेसियों ने कहा कि हम अहिंसा के सिद्धांत को मानते हैं।
इसलिए चंद्रशेखर आजाद जैसे हिंसक व्यक्ति की शव यात्रा में शामिल नहीं होंगे।
पुरुषोत्तम दास टंडन भी उस समय कांग्रेस के नेता थे और चंद्रशेखर आजाद के भक्त थे।
उन्होंने शहर के कांग्रेसियों को समझाया कि अब जब चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु हो चुकी है। और अब वो वीरगति को प्राप्त कर चुके हैं। तो मृत्यु के बाद हिंसा और अहिंसा पर चर्चा करना ठीक नहीं है।
और सभी कांग्रेसियों को अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए। आखिरकार बहुत समझाने बुझाने और बाद में जनता का असीम समर्पण देखने के बाद कुछ कांग्रेसी नेता और कांग्रेसी कार्यकर्ता डरते हुए चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल हुए थे
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु वर्ष 1931 में हो गई थी। लेकिन उनकी माँ 1951 तक जीवित रहीं। आजादी तो 1947 में मिल गई थी।
लेकिन आजादी के बाद 4 साल तक भी उनकी मां जगरानी देवी को बहुत भारी कष्ट उठाने पड़े थे।माता जगरानी देवी को भरोसा ही नहीं था कि उनके बेटे की मृत्यु हो गई है।
वो लोगों की बात पर भरोसा नहीं करती थीं। इसलिए उन्होंने अपनी मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली को एक धागे से बांध लिया था ..! बाद में पता चला कि उन्होंने ये मान्यता मानी थी कि जिस दिन उनका बेटा आएगा उसी दिन वो अपनी ये दोनों अंगुली धागे से खोलेंगी लेकिन उनका बेटा कभी नहीं लौटा वो तो देश के लिए अपने शरीर से आजाद हो गया था।
आजाद के परिवार के पास संपत्ति नहीं थी। गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था। पिता की मृत्यु बहुत पहले ही हो चुकी थी।बेटा अंग्रेजों से लड़ता हुआ बलिदान हो चुका था।
ये जानकर सीना फट जाता है।कि आजाद की मां आजादी के बाद भी पड़ोस के घरों में लोगों के गेहूं साफ करके और बर्तन मांजकर किसी तरह अपना गुजारा चला रही थी।
किसी कांग्रेसी नेता ने कभी आजाद की मां की सुध नहीं ली जो लोग जेलों में बंद होकर किताबें लिखने का गौरव प्राप्त करते थे और बाद में प्रधानमंत्री बन गए उन लोगों ने भी कभी चंद्रशेखर आजाद की माँ के लिए कुछ नहीं किया।वो एक स्वाभिमानी बेटे की मां थीं … बेटे से भी अधिक स्वाभिमानी रही होंगी, किसी की भीख पर जिंदा नहीं रहना चाहती थीं …!! लेकिन क्या हम देश के लोगोंनेउनकेप्रतिअपना फर्ज निभाया
ये बलिदान कितना बड़ा था।
इस पर फिर कभी चर्चा अपने बच्चों और परिवार वालों को अवश्य पढ़ाएं ।